Saturday 20 April 2013


राजद प्रमुख लालू यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव कर्पूरी की धरती से नयी राजनीती की सुरुआत करने समस्तीपुर के
रेलवे के इन्द्रालय पहुचे
युवाओ को एकजुट करने का तेजस का फार्मूला कितना कारगर होगा .......यह देखना बार दिल चस्प होगा समस्तीपुर में युवा सम्मलेन के बहाने एकजुट हुए राजद कार्यकर्ता 

Friday 12 April 2013

शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने में दिक्कतें दो स्तर पर हैं एक अधोसंरचना की कमी और दूसरा शिक्षा में गुणवत्ता का अभाव। जब 
भी शिक्षा का अधिकार कानून की बात होती है तो यादातर अधोसंरचना में कमी का रोना लेकर बैठ जाते हैं। यह समझना होगा कि जिन 40 प्रतिशत स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं या जिन 33 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं हैं या फिर उन 39 प्रतिशत स्कूलों में जहां नि:शक्त बच्चों के लिए रैम्प का निर्माण नहीं हुआ है, वहां पर भी बच्चे पढ़ रहे हैं। स्वच्छ पेयजल, खेल के मैदान, शौचालय, बिजली, पक्की इमारत यह सब जरूरी हैं, लेकिन इन तमाम व्यवस्थाओं के बावजूद अगर बच्चों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा नहीं मिल पा रही है तो सब व्यर्थ है। इसलिए स्कूलों में अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा बच्चों को मिल सके, सरकारों के लिए यह प्राथमिकता में होना चाहिए। साथ-साथ यह भी समझना होगा कि जब अच्छी शिक्षा स्कूलों में मिलेगी तो छात्र हो या पालक स्कूल की छोटी-मोटी कमियों पर ध्यान नहीं देंगे। जब हम स्कूल में गुणवत्तायुक्त शिक्षा की बात करते हैं तो मापदण्ड वहां से पढ़कर निकले बच्चों का इंजीनियर, डॉक्टर और शासकीय अधिकारी बनने की संख्या से तय किए जाते हैं। आज समाज को अच्छे शिक्षक की भी जरूरत है चाहे वह प्रौद्योगिकी संस्थानों में हो, प्रबंधकीय संस्थाओं में या फिर प्राथमिक शालाओं में।  
देश में स्कूल स्तर पर अभी भी 11 लाख शिक्षकों की कमी है। केन्द्र सरकार ने शिक्षक नियुक्त करने के जो मानक तय किए हैं उसे पूरा करने में भी मुश्किल हो रही है। एक व्यक्ति जब स्नातक या स्नातकोत्तर की डिग्री लेकर विश्वविद्यालय से बाहर निकलता है तो उसे प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं तक के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए क्षमतावान मानना चाहिए लेकिन बीएड की डिग्री की अनिवार्यता है। जब कोई विद्यार्थी 3 साल  की पढ़ाई कर बच्चों को पढ़ाने की काबिलियत नहीं पैदा कर सकता तो क्या गारंटी है कि वह एक साल बीएड पढ़कर सक्षम हो जाएगा। किसी कार्य के लिए विशेष डिग्री अथवा योग्यता को निर्धारित मापदण्ड मान लिया जाता है तो फिर यह नया व्यवसाय-व्यापार को जन्म देता है। शिक्षक बनने के लिए बीएड की अनिवार्यता ने देश में हजारों निजी शालाओं में बीएड की डिग्री कोर्स की शुरुआत कर दी। सवाल यह कि इतनी संख्या में बीएड पढ़ाने के लिए  शिक्षक कहां से मिलेंगे? फिर किसी तरह साल भर पाठयक्रम चलाकर बीएड की डिग्री दे देना ही संख्या का लक्ष्य हो जाता है। इसके एवज में फिर हजारों-लाखों रुपए फीस वसूल ली जाती है। इस तरह अर्हता महंगी हो जाती है और गांव के विपन्न इस अर्हता को प्राप्त नहीं कर पाते। यह देखना होगा कि शिक्षण भी एक कला है, इसके लिए डिग्री जरूरी नहीं, बल्कि कुछ गुणों की जरूरत होती है। इसलिए अगर शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ानी है तो स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया पर पुर्नविचार करना होगा। साथ-साथ शिक्षा के अधिकार कानून को लागू करने के साथ-साथ उच्च शिक्षा में भी गुणवत्ता को सुधारने की जरूरत है। sabhar desh bandhu 

 बिहार के मुख्यमंती नीतीश कुमार ने आज कहा कि नियोजित शिक्षको को वेतनमान देने के लिये 12 हजार करोड़ रूपये की अतिरिक्त आवश्यकता होगी जिसकी व्यवस्था करने की स्थिति मे राज्य सरकार नहीं है ।       श्री कुमार ने यहां के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल मे स्वामी सहजानंद सरस्वती की 125 वीं जयंती समारोह को संबोधित करते हुये कहा कि अपनी मांग को लेकर आंदोलन कर रहे शिक्षको की मांगे पूरी करने पर सरकार को जहां 12 हजार करोड़ रूपये की अतिरिक्त आवश्यकता होगी वहीं सड़क. बिजली.स्वास्थ्य समेत अन्य परियोजनाओ को छोड़ना होगा 1 उन्होने सवालिये लहजे मे कहा कि प्रदेश की जनता क्या यह चाहेगी कि विकास के कार्यो को छोड़कर सारे पैसे वेतन भुगतान पर ही खर्च कर दिये जाये 1     मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार की जब आर्थिक स्थिति मजबूत होगी तब वेतन वृद्धि किये जाने पर विचार किया जायेगा 1 उन्होने विपक्षी दल के नेताओ पर चुटकी लेते हुये कहा कि एक समय वे इन शिक्षको की सेवा को समाप्त करने की बात करते थे लेकिन आज वे कह रहे है कि उनके सत्ता मे आने पर ऐसे शिक्षको की सेवा को नियमित कर देगे 1 उन्होने कहा कि विपक्षी नेताओ को यह बताना चाहिये कि उनके इस तरह की बातो का क्या अर्थ है ।

राज्य के सभी पंचायतों में हाई स्कूल खोले जायेंगे:- मुख्यमंत्री  

लोगों की तरक्की ही हमारा विकास का माॅडल है, जिसमें आमलोगों को फायदा होता हैं। यह आमलोगांे का विकास है, यह बिहार के विकास का माॅडल है। विरासत में हमें समस्यायें मिली थी। हमलोगों ने मिलकर समस्याओ को दूर किया है। समाज के सभी तबकों को जोडा है। सभी की जरूरतों को समझते हुये कारगर कदम उठाया गया है। तरक्की वही टिकाऊ होगी, जिसमें सबलोगों की भागीदारी होगी। हाषिये पर चले गये लोगो का विषेष ध्यान रखा गया है। आज मुख्यमंत्री श्री नीतीष कुमार समस्तीपुर जिले के मोहिउद्दीननगर प्रखंड कार्यालय परिसर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण करने के पष्चात रामबहादुर सिंह महाविद्यालय परिसर अंदौर, मोहिउद्दीननगर में आमसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने जन सहयोग से स्थापित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित किए जाने के कार्य में इस क्षेत्र की जनता के देषभक्ति की जज्बे की सराहना की। श्री कुमार ने कहा कि नेताजी को देष कभी भूल नहीं सकता है। आजादी की लडाई में उनकी विषिष्ट भूमिका थी। उनके योगदान को संधर्ष एवं बलिदान को देष सदैव याद रखेगा। 
     मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार एवं देष के अधिसंख्य लोगों की आजीविका कृषि है और समाज का बड़ा तबका इस पर निर्भर है। हमने इसे केन्द्र में रखा है। सभी मे उत्साह का भाव उत्पन्न हुआ है। महिलायें आगे आने लगी है। पचास प्रतिषत आरक्षण पंचायत एवं नगर निकाय में मिलने से लाखों की संख्या में महिलायें जनप्रतिनिधि बनी। इसके बाद लडकियों की षिक्षा पर जोर दिया गया। लड़कियों को साइकिल देकर पढाई के लिए प्रोत्साहित किया गया। पूरे बिहार का सामाजिक परिदृष्य बदल गया है। आज सूबे के गांव-गांव मे लडकियाॅ साइकिल से स्कूल जा रही है। 2007 की तुलना मे चार गुणा अधिक लडकियाॅ षिक्षा प्राप्त कर रही हंै। आज साइकिल चलाती लड़की की तस्वीर सूबे के विकास की तकदीर का प्रयाय बन गई है। पूरे विष्व मे बिहार के पिछडेपन को दूर कर विकास किए जाने की चर्चा चल रही है। विष्व के पिछडे़ हुए मुल्को में भी आषा जगी है, यदि बिहार विकास कर सकता है तो हमारा मूल्क भी कर सकता है।
नरहन कोलेज में बी एड कोर्स का उद्घाटन करते नितीश

  सभी पंचायतों में होंगे हाई स्कूल  :-  नीतीश 
 Biharone Team, Samastipur
जहां एक ओर शिक्षको को देने के लिए पैसे की रोना रोने वाली सरकार  ने एक अचछा विचार लायी है .पंचायतो में हाई स्कूल खोंलने की घोषणा  समस्तीपुर दौरे में की  है . उन्होंने बताया की लोगों की तरक्की ही हमारा विकास का माॅडल है, जिसमें आमलोगों को फायदा होता हैं। यह आमलोगांे का विकास है, यह बिहार के विकास का माॅडल है। विरासत में हमें समस्यायें मिली थी। हमलोगों ने मिलकर समस्याओ को दूर किया है। समाज के सभी तबकों को जोडा है। सभी की जरूरतों को समझते हुये कारगर कदम उठाया गया है। तरक्की वही टिकाऊ होगी, जिसमें सबलोगों की भागीदारी होगी। हाशिये पर चले गये लोगो का विशेष  ध्यान रखा गया है। आज मुख्यमंत्री श्री नीतीश  कुमार समस्तीपुर जिले के मोहिउद्दीननगर प्रखंड कार्यालय परिसर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण करने के पष्चात रामबहादुर सिंह महाविद्यालय परिसर अंदौर, मोहिउद्दीननगर में आमसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने जन सहयोग से स्थापित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित किए जाने के कार्य में इस क्षेत्र की जनता के देषभक्ति की जज्बे की सराहना की। श्री कुमार ने कहा कि नेताजी को देश  कभी भूल नहीं सकता है। आजादी की लडाई में उनकी विषिष्ट भूमिका थी। उनके योगदान को संधर्ष एवं बलिदान को देश  सदैव याद रखेगा। 
मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार एवं देश  के अधिसंख्य लोगों की आजीविका कृषि है और समाज का बड़ा तबका इस पर निर्भर है। हमने इसे केन्द्र में रखा है। सभी मे उत्साह का भाव उत्पन्न हुआ है। महिलायें आगे आने लगी है। पचास प्रतिषत आरक्षण पंचायत एवं नगर निकाय में मिलने से लाखों की संख्या में महिलायें जनप्रतिनिधि बनी। इसके बाद लडकियों की शिक्षा  पर जोर दिया गया। लड़कियों को साइकिल देकर पढाई के लिए प्रोत्साहित किया गया। पूरे बिहार का सामाजिक परिदृष्य बदल गया है। आज सूबे के गांव-गांव मे लडकियाॅ साइकिल से स्कूल जा रही है। 2007 की तुलना मे चार गुणा अधिक लडकियाॅ  शिक्षा  प्राप्त कर रही हंै। आज साइकिल चलाती लड़की की तस्वीर सूबे के विकास की तकदीर का प्रयाय बन गई है। पूरे विष्व मे बिहार के पिछडेपन को दूर कर विकास किए जाने की चर्चा चल रही है। विष्व के पिछडे़ हुए मुल्को में भी आषा जगी है, यदि बिहार विकास कर सकता है तो हमारा मूल्क भी कर सकता है।
फोटो cradit by keshaw kumar

Tuesday 9 April 2013

राजद सामाजिक न्याय का झंडा कभी झुकने नहीं देगा। इसकी बुनियाद ही सामाजिक न्याय से शुरू हुई है। ये बातें विधानसभा में विपक्ष के नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने सोमवार को रविन्द्र भवन में आयोजित अखिल भारतीय रजवार विकास संघ द्वारा रजवार अधिकार रैली में कहीं। उन्होंने वर्तमान राज्य सरकार की जमकर आलोचना की। उन्होंने कहा कि इस राज्य में सरकार ने मेहनती लोगों को सम्मान देने का काम नहीं किया है। मुसहर और रजवार जाति के लोग सामाजिक रूप से पिछड़े रहे हैं। अनुसूचित जाति में रहने से इनकी हालत नहीं सुधर सकती। इन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करना होगा। इसके लिए आंदोलन करने की जरूरत है, जिसमें राजद भी पूरा सहयोग देगा। श्री सिद्दीकी ने लोगों से अपील की कि दोस्त और दुश्मन का पहचान कीजिये। इस मौके पर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने मोबाइल फोन से शुभकामना दी और कहा पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की तबीयत खराब रहने के कारण वे कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके। उन्होंने लोगों से परिवर्तन रैली में शिरकत करने की अपील की। बिहार विधान परिषद में विपक्ष के नेता गुलाम गौस ने लोगों को खुद इतिहास लिखने की नसीहत दी और कहा कि दूसरे द्वारा नसीहत लिखे जाने पर उसमें छेड़छाड़ की आशंका बनी रहती है। सांसद रामकृपाल यादव ने कहा कि दलित को महादलित बना दिया गया है, लेकिन हक और सम्मान नहीं दिया गया। हक दिलाने का काम सिर्फ राजद के कार्यकाल में किया गया। राजद में गरीबों पर जुल्म करने वालों को जेल जाना पड़ता था। आज उन्हें नक्सली बताकर जेल भेजा जा रहा है।

Monday 8 April 2013

narendar bhai modi ka bhasan


     भाइयों, 
 
मैं सबसे पहले आपसे क्षमा मांगता हूं क्योंकि  कार्यक्रम की रचना शायद 11 को तय हुई थी और मुझसे भी आग्रह था कि मैं 11 को ही कार्यक्रम में आऊं। लेकिन 11 से नवरात्रि का पर्व शुरू हो रहा है जिस कारण मेरे लिए दस दिन निकलना मुश्किल था। मेरे कारण आप सबने अपनी तारीख बदली, आपको कष्ट हुआ, फिर आपने ऑडिटोरियम में कार्यक्रम में रखना था, आपको वैन्यू चेंज करना पड़ा, आपको कष्ट हुआ, यहां भी इतने लोग खड़े हैं जिन्हें कष्ट हो रहा है मैं उसके लिए क्षमा मांगता हूं..
 
नया अनुभव शेयर कर रहा हूं, हो सकता है मेरे भाषण में भी उन चीजों की झलक दिखेगी। शायद यह मेरा पहला ऐसा प्रवचन हैं, (आप क्यों हंस रहे हैं, चलिए मुझे बाद में अपने हंसने का कारण बता देना।) कि जिस के पूर्व मुझे फेसबुक और ट्विटर पर बहुत बड़ी मात्रा में आपसे जुड़ी हुई महिलाओं ने संपर्क किया और कई सवाल पूछे और बहुत सारे सुझाव दिए। इसलिए मुझे भाषण पर बहुत ज्यादा सोचना नहीं पड़ रहा है। मैं इस प्रयोग का स्वागत कर रहा हूं।
 
मुझे खुशी है कि हमारी बहनें-माताओं के मन में सामाजिक मुद्दों पर चिंता है। मैं सोशल मीडिया तकनीक का आभारी हूं जिसके माध्यम से मैं अपनी माताओं-बहनों के मन की बात समझ पाया। मैं उनकी बात को देश के तमाम नागरिकों के सामने रख रहा हूं। मैं चाहूंगा कि जहां जा रहा हूं उन लोगों के मन में कुछ सवाल हो तो मुझे भेजे, मैं गंभीरता से उनके सवाल लूंगा। आपको भी निमंत्रण हैं, आप भी मुझे अपने सुझाव दे सकते हैं। 
 
हमारे देश में, हमारी सांस्कृतिक परंपरा में, हमारी सांस्कृतिक विरासत में मां का इंसान सबसे ऊपर होता है। मां शब्द सुनते ही श्रद्धा का भाव प्रकट होता है, जहां भी पवित्रता है वहां हमें मां नजर आती है, यह हमारे संस्कारों में है। अगर गंगा के प्रति हमारी श्रद्धा है तो हम उसे मां कहेंगे, भारत के प्रति श्रद्धा है तो भारत को भारत मां कहेंगे, गाय के प्रति श्रद्धा है तो गाय को हम गाय मां कहेंगे। सदियों से हमारे देश में मां का स्थान, नारी का स्थान सर्वोपरि माना गया है, इसमें दुविधा कभी नहीं रही। लेकिन हजारों साल की गुलामी का कालखंड में हमारे भीतर बहुत सी बुराइयां और कमियां आईं हैं, और कमियां इस रूप तक आईं है कि 18वीं सदी में बच्चों को दूध पीती करने की परंपरा शुरू हो गई, बच्चों के जन्म के साथ बच्चों को डुबो कर मारा जाने लगा। उस समय इसके सामाजिक कारण रहे होंगे, लेकिन हम कल्पना कर सकते हैं कि हद तक हमारी विकृति हो सकती है। देश आजाद होने के बाद  हमें लगता था कि मातृ गौरव की परंपरा को हम दुनिया के सामने रखेंगे, लेकिन जैसे जैसे हम ज्यादा से ज्यादा पढ़े लिखे होते गए, हमारी विकृतियां और बढ़ती गईं। 
 
कम से कम 18वी सदी में बेटी को जन्म लेने का अवसर तो मिलता था, उसे सांस लेने के कुछ पल मिलते थे, उसे अपनी मां को देखने का सौभाग्य देखना मिलता था, पल दो पल वह अपने रिश्तेदारों को देख लेती थी जिसके बाद उसे मौत के घाट उतार दिया जाता था, लेकिन आज मां के पेट में ही बेटी को मारा जा रहा है, बेटी होने वाली है इसलिए गर्भपात हो रहे हैं और इस पाप में पुरुष और स्त्रियां दोनों हैं, हम 18वीं सदी से भी पीछे चले गए हैं, यह इसका बड़ा सबूत है। 
 
यह पीड़ा हमारे राज्य में भी है, 2011 की जनगणना के आंकड़ों ने मेरे रौंगटे खड़े कर दिए, रोएं तो किसके सामने रोएं। कहें तो किससे कहें, क्या 21वीं सदी हमें सिर उठाने की इजाजत देती है? 

    भाइयों, 
 
मैं सबसे पहले आपसे क्षमा मांगता हूं क्योंकि  कार्यक्रम की रचना शायद 11 को तय हुई थी और मुझसे भी आग्रह था कि मैं 11 को ही कार्यक्रम में आऊं। लेकिन 11 से नवरात्रि का पर्व शुरू हो रहा है जिस कारण मेरे लिए दस दिन निकलना मुश्किल था। मेरे कारण आप सबने अपनी तारीख बदली, आपको कष्ट हुआ, फिर आपने ऑडिटोरियम में कार्यक्रम में रखना था, आपको वैन्यू चेंज करना पड़ा, आपको कष्ट हुआ, यहां भी इतने लोग खड़े हैं जिन्हें कष्ट हो रहा है मैं उसके लिए क्षमा मांगता हूं..
 
नया अनुभव शेयर कर रहा हूं, हो सकता है मेरे भाषण में भी उन चीजों की झलक दिखेगी। शायद यह मेरा पहला ऐसा प्रवचन हैं, (आप क्यों हंस रहे हैं, चलिए मुझे बाद में अपने हंसने का कारण बता देना।) कि जिस के पूर्व मुझे फेसबुक और ट्विटर पर बहुत बड़ी मात्रा में आपसे जुड़ी हुई महिलाओं ने संपर्क किया और कई सवाल पूछे और बहुत सारे सुझाव दिए। इसलिए मुझे भाषण पर बहुत ज्यादा सोचना नहीं पड़ रहा है। मैं इस प्रयोग का स्वागत कर रहा हूं।
 
मुझे खुशी है कि हमारी बहनें-माताओं के मन में सामाजिक मुद्दों पर चिंता है। मैं सोशल मीडिया तकनीक का आभारी हूं जिसके माध्यम से मैं अपनी माताओं-बहनों के मन की बात समझ पाया। मैं उनकी बात को देश के तमाम नागरिकों के सामने रख रहा हूं। मैं चाहूंगा कि जहां जा रहा हूं उन लोगों के मन में कुछ सवाल हो तो मुझे भेजे, मैं गंभीरता से उनके सवाल लूंगा। आपको भी निमंत्रण हैं, आप भी मुझे अपने सुझाव दे सकते हैं। 
 
हमारे देश में, हमारी सांस्कृतिक परंपरा में, हमारी सांस्कृतिक विरासत में मां का इंसान सबसे ऊपर होता है। मां शब्द सुनते ही श्रद्धा का भाव प्रकट होता है, जहां भी पवित्रता है वहां हमें मां नजर आती है, यह हमारे संस्कारों में है। अगर गंगा के प्रति हमारी श्रद्धा है तो हम उसे मां कहेंगे, भारत के प्रति श्रद्धा है तो भारत को भारत मां कहेंगे, गाय के प्रति श्रद्धा है तो गाय को हम गाय मां कहेंगे। सदियों से हमारे देश में मां का स्थान, नारी का स्थान सर्वोपरि माना गया है, इसमें दुविधा कभी नहीं रही। लेकिन हजारों साल की गुलामी का कालखंड में हमारे भीतर बहुत सी बुराइयां और कमियां आईं हैं, और कमियां इस रूप तक आईं है कि 18वीं सदी में बच्चों को दूध पीती करने की परंपरा शुरू हो गई, बच्चों के जन्म के साथ बच्चों को डुबो कर मारा जाने लगा। उस समय इसके सामाजिक कारण रहे होंगे, लेकिन हम कल्पना कर सकते हैं कि हद तक हमारी विकृति हो सकती है। देश आजाद होने के बाद  हमें लगता था कि मातृ गौरव की परंपरा को हम दुनिया के सामने रखेंगे, लेकिन जैसे जैसे हम ज्यादा से ज्यादा पढ़े लिखे होते गए, हमारी विकृतियां और बढ़ती गईं। 
 
कम से कम 18वी सदी में बेटी को जन्म लेने का अवसर तो मिलता था, उसे सांस लेने के कुछ पल मिलते थे, उसे अपनी मां को देखने का सौभाग्य देखना मिलता था, पल दो पल वह अपने रिश्तेदारों को देख लेती थी जिसके बाद उसे मौत के घाट उतार दिया जाता था, लेकिन आज मां के पेट में ही बेटी को मारा जा रहा है, बेटी होने वाली है इसलिए गर्भपात हो रहे हैं और इस पाप में पुरुष और स्त्रियां दोनों हैं, हम 18वीं सदी से भी पीछे चले गए हैं, यह इसका बड़ा सबूत है। 
 
यह पीड़ा हमारे राज्य में भी है, 2011 की जनगणना के आंकड़ों ने मेरे रौंगटे खड़े कर दिए, रोएं तो किसके सामने रोएं। कहें तो किससे कहें, क्या 21वीं सदी हमें सिर उठाने की इजाजत देती है?